योगासन का जन्म कैसे हुआ है।
Meditation के गहरे अनुभव से ज्ञात हुआ, की शरीर ध्यान में बहुत सी आकृतिया लेता है। जिसे हम Types of Asanas भी कह सकते है।असल में मन की दशा के अनुकूल शरीर की आकृति भी बदलती है। जैसे की प्रेम की स्थिति में आपका शरीर किसी होर दशा में होता है और जब आप क्रोध में होते हो तो आपका चेहरा और उसके हाव भाव बिलकुल अलग हो जाते है।
क्रोध में आपके चेहरे के भाव कभी भी वैसे नही होंगे। जैसे की प्रेम के समय में होंगे। यह सब बाते मन और शरीर के तालमेल से बनती है। आपके मन के अंदर जेसे विचार होंगे। आपका शरीर वेसे ही प्रतिक्रिया करेगा। हमारे सभी आसन हमारी अन्तर की स्थिति के प्रितिरुप है।
Yogasanas का जन्म ध्यान में हुआ है।
जब शरीर के भीतर कोई परिवर्तन होता है। तो शरीर को भी उस परिवर्तन के लिए अपने आप में Adjustment करनी पड़ती है। जेसे की आपके शरीर में कुण्डलिनी का उदय हुआ है । तो उसे मार्ग देने के लिए आपके रीड की हडडी बहुत सी आकृतिया लेगी। जिसे Yoga Posters कहते है।
जब कुण्डलिनी जागती है। तो आपके शरीर को कुछ ऐसी स्थिति लेनी पड़ेगी। जो आपने कभी भी नही ली। जैसे की जागने की स्थिति में आप खड़े हो सकते हो या फिर चल सकते हो, लेकिन सोने की स्थिति में आप इन दोनों में कुछ नही कर सकते। सोने की स्थिति भी, सबकी अलग अलग होती है। जैसे की जंगली आदमी को तकिये की जरूरत नही होती।
जबकि शहर के आदमी को बिना तकिये के नींद नही आएगी। क्योकि नींद के लिए जरूरी है। की आपके सिर में खून का प्रवाह कम हो। तो जंगली आदमी अपने दिमाग का प्रयोग कम करता है । तो उसके सिर में खून का प्रवाह बहुत कम होता है। जबकि शहर के आदमी को अपने सिर में पड़े खून को निचे लेन के लिए तकिये की बहुत जरुरत होती है।
ये हमारे शरीर की स्थितियां हमारे भीतर की स्थितियो के अनुकूल खड़ी होती है। तो आसन बनने शुरू होते है । ऊर्जा के हमारे शरीर में गति करने से। हमारे अलग अलग चक्र जागृत होने पर अलग-अलग आसान का निर्माण होता है। अब इससे उलटी बात भी हमारे सामने आयेगी। यदि हम इन क्रियाओ को करे तो क्या हमे ध्यान उपलब्ध हो जाएगा।
इसे समझने के लिए आपको यह समझना होगा की सभी साधको को कुण्डलिनी जागरण पर एक सा अनुभव नही होता। सभी के अनुभव अलग अलग होते है। क्योकि सभी के विचार अलग-अलग है। सभी का खान-पान अलग है। एक उद्धरण के रूप में समझे। अगर किसी साधक की कुण्डलिनी जागृत हो रही है। और उस समय उसके सिर में खून का प्रवाह बहुत कम है।
तो उसका अंदर से मन कहेगा की वह अपना सिर निचे की तरफ कर ले और पैरो को सिर से ऊपर ले जाये। क्योकि खून का बहाब सिर में अधिक से अधिक पहुंच सके। लेकिन सभी का मन नही करेगा। क्योकि सभी के सिर में खून का अनुपात अलग-अलग है। तो प्रत्येक साधक की स्थिति के अनुकूल आसन का जन्म होगा। जो की अलग साधक की अलग स्थिति है। इसलिए अब सिर्फ Yoga Posters ही रह गए है। उसके पीछे के Logic को सभी भूलते जा रहे है।
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