मंदिर में जाने से पहले क्यों बजाते हैं घंटा या घंटी?
मंदिर के द्वार पर और विशेष स्थानों पर घंटी या घंटे लगाने का प्रचलन प्राचीन काल से ही रहा है। लेकिन इस घंटे या घंटी लगाने का धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व क्या है? कभी आपने सोचा, कि यह किस कारण से लगाई जाती है? घंटियां 4 प्रकार की होती हैं :
>>> गरूड़ घंटी
>>> द्वार घंटी
>>> हाथ घंटी
>>> घंटा
गरूड़ घंटी : गरूड़ घंटी छोटी-सी होती है। जिसे एक हाथ से बजाया जा सकता है।
द्वार घंटी : यह द्वार पर लटकी होती है। यह बड़ी और छोटी दोनों ही आकार की होती है।
हाथ घंटी : पीतल की ठोस एक गोल प्लेट की तरह होती है जिसको लकड़ी के एक गद्दे से ठोककर बजाते हैं।
घंटा : यह बहुत बड़ा होता है। कम से कम 5 फुट लंबा और चौड़ा। इसको बजाने के बाद आवाज कई किलोमीटर तक चली जाती है।
मंदिर में घंटी लगाए जाने के पीछे न सिर्फ धार्मिक कारण है। बल्कि वैज्ञानिक कारण भी, इनकी आवाज को आधार देते हैं। वैज्ञानिकों का कहना है। जब घंटी बजाई जाती है। तो वातावरण में कंपन पैदा होता है, जो वायुमंडल के कारण काफी दूर तक जाता है। इस कंपन का फायदा यह है कि इसके क्षेत्र में आने वाले सभी जीवाणु, विषाणु और सूक्ष्म जीव आदि नष्ट हो जाते हैं। जिससे आसपास का वातावरण शुद्ध हो जाता है। अत: जिन स्थानों पर घंटी बजने की आवाज नियमित आती है। वहां का वातावरण हमेशा शुद्ध और पवित्र बना रहता है।
इससे नकारात्मक शक्तियां हटती हैं। सुबह और शाम, जब भी मंदिर में पूजा या आरती होती है। तो एक लय और विशेष धुन के साथ घंटियां बजाई जाती हैं। जिससे वहां मौजूद लोगों को शांति और दैवीय उपस्थिति की अनुभूति होती है। एक कारण यह है कि जब सृष्टि का प्रारंभ हुआ, तब जो नाद गूंजी थी। वही आवाज घंटी बजाने पर भी आती है।
घंटी उसी नाद का प्रतीक है। उल्लेखनीय है कि यही नाद 'ओंकार' के उच्चारण से भी जागृत होता है। कहीं-कहीं यह भी लिखित है कि जब प्रलय आएगा उस समय भी ऐसा ही नाद गूंजेगा।
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