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मूर्तिकार ने उस पथर के साथ ऐसा क्यो किया? || Best hindi story with moral & motivation

नमस्कार दोस्तों तो चलिए एक मजेदार किस्सा सुनते हैं 

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Best hindi motivational story with moral

कल ही यह मैंने किस्सा सुना, तो मैंने सोचा कि आप के साथ भी शेयर कर दू , 

तो बात कुछ ऐसी है !!

बहुत समय पुरानी, राजा महाराजाओ के समय की,  

एक बार एक राज्य के किसी शहर में एक बड़ा ही होनहार और जाना माना मूर्तिकार रहता था।

तो उस राज्य के राजा ने अपनी माँ की याद में एक मंदिर बनवाने की सोची तो मंदिर बनवाने के लिए एक मूर्तिकार की जरूरत थी। 

जो कि भगवान की मूर्ति बनाकर उन्हें देता लेकिन मूर्ति चाहिए थी बहुत जल्दी, 

तो मंत्री ने राजा को उस मूर्तिकार के बारे में बताया और तब राजा ने मूर्ति बनाने की जिम्मेदारी अपने मंत्री को दी। 

अब मंत्री उस मूर्तिकार के पास आया और जल्द से जल्द मूर्ति बनाने को कहा। मंत्री ने उस मूर्तिकार को दो बड़े-बड़े पत्थर दिए

और कहा कि हमें जल्द से जल्द एक भगवान की दुर्लभ मूर्ति चाहिए। 

 

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अब मूर्तिकार ने अपना काम शुरू कर दिया। उसने एक पथर को चुना और उस पर अपना हथोड़ा और छेनी लेकर उस पर चोट करने लगा। 

चोट पड़ते ही वः पत्थर मूर्तिकार से बड़ी दुखभरी आवाज से बोला। 

है महान मूर्तिकार कृपया आप मेरे साथ ऐसा मत करें। 

आपके हथोड़ा और छेनी से मुझे बहुत दर्द हो रहा है कृपया कर मुझे छोड़कर दूसरे पत्थर पर मूर्ति बनाने का काम शुरू करदे। 

तो मूर्तिकार ने उस बेचारे पत्थर की दुःख भरी पुकार को सुना और उस पर प्रहार करना बंद कर दिया और उसने दूसरे पत्र के पास जाकर पूछा कि 

मैं मूर्ति बनाने का कार्य कर रहा हूं क्या तुम पर मैं अपने हथोड़ा और छेनी को इस्तेमाल कर सकता हूं !

तो उस पत्थर ने बड़े प्यार से मुस्कुराते हुए कहा बिल्कुल आप जैसा चाहे।  

तब मूर्तिकार ने उस पथर पर अपना काम शुरू किया और बहुत ही कम समय में उसने मूर्ति बनाने का काम सम्पन किया। 

अब एक बेहतरीन और सुंदर सी भगवान की मूर्ति बनकर त्यार हो गयी थी। तो अगले दिन मंत्री उस मूर्ति को

देखने आया और उसने मूर्तिकार की प्रशंसा की। 

अब मंदिर भी बन चुका था और मूर्ति लगाना शेष था 

 

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राजा के द्वारा मूर्ति लगा दी गई लेकिन अभी एक काम और बाकी था।  

जो भी भक्त श्रद्धालु मंदिर में आते नारियल फोड़ने के लिए तो उनके लिए कोई मजबूत पथर नहीं था।

अब एक मजबूत पत्थर की जरूरत थी। मंत्री को याद आया कि मैंने मूर्तिकार को दो पत्थर दिए थे उसमें से

एक की तो मूर्ति बन गयी लेकिन दूसरे पत्थर का इस्तेमाल हम नारियल फोड़ने के लिए कर सकते हैं। 

तो मंत्री ने उस पत्थर को मंदिर के साइड पे लगा दिया। 

अब हर श्रद्धालु जब मंदिर में उस मूर्ति की पूजा करने उस भगवान की पूजा करने आते तो अपनी मनोकामना

को पूरा करने के लिए उस बाहर रखे हुए पत्थर पर नारियल फोड़ते। 

तो इस प्रकार दिन में कम से कम हजारों बार उस पथर को दर्द की बही प्रक्रिया से झूझना पड़ता जिस वजह से

उसने मूर्तिकार को हथोड़ा और छेनी चलाने से मना कर दिया था। 

 

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तो यह बात हम सभी पर भी लागू होती है मेरे दोस्त, 

अगर हम अपनी जिंदगी के शुरुआत के कुछ साल कठिन परिश्रम कर ले, दुख को सहन कर ले तो हमारी आने वाली

जिंदगी बड़े आराम से कट जाएगी। 

अगर हम अपनी जिंदगी के शुरुवात के समय में बड़े आराम से जीते रहे सभी कष्टों के आने से पहले ही उनसे दूर भागते रहे।

तो आने वाली जिंदगी उस बदनसीब पथर की तरह बड़ी दुख में कटेगी। 

तो यह आपकी मर्जी है कि आपने कौन सा रास्ता चुनना है 

आराम की जिंदगी जिसमे कुछ निखरने और न ही कुछ सिखने को है। या फिर दुख भरी जिसमे दुःख बहुत कम समय का है और जिंदगी में निखार और खुशिया जिंदगी के अंतिम क्षण तक है। 

इस बात को हमें कमेंट में जरूर बताना।



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