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क्या हमारे शरीर की बीमारिया सच में है या सम्मोहन का धोखा है।

स्वस्थ रहने के लिए जाने कोन सी बस्तु का उपयोग किस समय करना चाहिए।

क्या हमारे शरीर की बीमारिया सच में है या सम्मोहन का धोखा है।

क्या शरीर की बीमारिया सच में है।

आज से 60 साल पहले सभी बीमारिया शारीरिक बीमारिया समझी जाती थी। जितना हम बीमारी के बारे में जानते गए। हमे पता लगने लगा की जादातर बीमारिया शारीरिक नही, बल्कि मानसिक है।

बीमारिया

बड़े से बड़ा डॉक्टर यही कहेगा की हमारे शरीर की 50% बीमारिया मानसिक है। जाने की, मन के द्वारा बनाई गई है। उनका कोई अस्तित्व नही और जो बीमारिया शरीरिक है। बह भी मन से ही प्रभावित होती है। मन ही हमारा Controlling Point है। वही से हम जीते है। वही से ही हमारा सारा व्यक्तित्व है। इसलिए संकल्प का बड़ा मूल्य है।

अपने यह सुना या देखा होगा। की अगर किसी Hypnotize ब्यक्ति के हाथ में एक पत्थर रख दिया जाये और उसे कहे की, यह जलता हुआ कोयला है। तो वो व्यक्ति उस पत्थर को बेसे ही फेंकेगा। जेसे किसी ने सच में जलता कोयला हाथ पर रख दिया हो। यहा तक तो बात ठीक थी। की उसके मन को लगने लगा की बह कोयला है। पर आस्चर्य की बात तो यह है। की उसके हाथ पर जलने का Nishan भी पड जायेगा।

जेसा की जलता कोयला रखने पर आया होता। आस्चर्य की बात है। इसके पीछे का तर्क कहता है। की सम्मोहित ब्यक्ति का अचेतन मन जाग जाता है। और चेतन मन सो जाता है। और जब चेतन मन सो जाता है। तो वह संदेह करना बंद कर देता है।

सम्मोहन

क्योकि समस्त संदेह चेतन मन पर ही होते है। अगर हम हमारे मन के 10 भाग करे तो एक भाग चेतन है। बाकि के 9 भाग अचेतन। यह 9 हिस्से अँधेरे में है। बस एक हिस्सा ही काम करता है। यह ही बिचार करता है, सोचता है। अगर ये चेतन मन सो जाये। तो बाकि के 9 भाग सिर्फ स्वीकार करते है। बहा कोई बिचार नही। कोई भाग विरोध नही करता।

तो सम्मोहित stage में आपके सोचने वाले मन को सुला दिया जाता है और बाकि के बचे मन विचार नही कर सकते। तो शरीर के पास मन को इंकार करने का कोई उपाय नही। अगर मन ने किसी चीज को पूरी तरह स्वीकार कर लिया। तो शरीर को वैसा ही करना पड़ेगा। इससे उल्टा भी हो सकता है।

एक गरम पत्थर को ठंडा कह कर आप अपने हाथ में रखो गए तो। वो आपके हाथ को नही जलायेगा। इसी बजह से संत अंगारो पे नंगे पैर चल पाते है। मन के संकल्प की बड़ी सम्भावनाये है।

जो लोग जिंदगी में हार जाते है। उनके हारने की परस्थिति कम, होती है। वह अपने मन की बजह से हार जाते है। आप जो होना चाहते है। आपके गहरे मन में पहले से ही बही भावना होती है। तो आप जेसा अपनी Zindgi में बनना चाहते है। वैसी ही भावना अपने मन में रखने की कोशिश करे।



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