ॐ का जन्म कैसे हुआ।
ॐ क्या है।
हमारा सारा का सारा शब्दों का विस्तार इन तीन शब्दों से है। A,U और M का कोई अर्थ नही। अर्थ तो इनके संबंधो से तय होता है। इन तीन मूल ध्वनियों के जोड़ से ॐ OM बना दिया गया। तो हम ॐ को लिख भी सकते थे। लेकिन लिखने से शक पैदा होता की इसका कोई अर्थ है। लिखने से वो शब्द बन जाता।
तो शब्द की जगह पे ॐ का चित्र बनाया गया। उसमे कोई भी अक्षर का उपयोग नही किया गया। अगर आप उस ॐ के चित्र ध्यान से देखोगे। तो उसके भी तीन हिसे है। और वो A,U और M के प्रतिक है। इस चित्र की खोज भौतिक शरीर से नही की गई।
उसकी खोज चोथे शरीर से की गई है। अगर कोई साधक चोथे शरीर में जाता है। और बिलकुल निर्विचार हो जाता है। तो वहा पे अ, उ, म की ध्वनियां गूंजने लगती है। और उन तीनो का जोड़ ॐ बनने लगता है। जब हमारे सारे विचार खो जाते है। तो सिर्फ ध्वनियां ही शेष रह जाती है। हर शब्द का एक अपना ही पैटर्न है। अगर कोई साधक ॐ की ध्वनि को लगातार सुनता रहे तो। इसका चित्र भी प्रगट होना शुरू हो जाता है। इसी प्रकार सारे बिज मन्त्र खोजे गए।
जब एक-एक चक्र पर जो ध्वनि होती है। जब उस ध्वनि को साधक सुनता है। तो उस चक्र का बिज रूप उस साधक की पकड़ में आ जाता है। सारे बीज इसी तरह निर्मित किये गए। ॐ परम् बीज है। वो सातवे चक्र का बिज है। इस भांति इस शब्द को खोजा गया। स्वस्तिक बहुत बक्त से ॐ जैसा ही एक प्रतिक था। जेसे की ॐ सातवे का प्रतिक था। बेसे ही स्वस्तिक पहले का प्रतिक था। इसलिए स्वस्तिक का जो चित्र है। बह Dynamic है। मूव कर रहा है।
बह मूवमेंट का प्रतिक है और ॐ अंतिम का प्रतिक है। इसलिए उसमे मूवमेंट बिलकुल भी नही है। क्योकि वो एक तरह की इलेक्ट्रिक फ़ोर्स है।
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