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आईये जानते है सम्पूर्ण Ram Katha के बारे में वो भी हिंदी में।

ध्यान के समय देवताओं के चित्र क्यों दिखते है।

आईये जानते है आठ सिद्धियो के बारे में।

आठ सिद्धिया कौन सी है?

आठ सिद्धिया, यह शब्द तो आपने बहुत बार सुना होगा और हनुमान चालीस में भी इसका उलेख आता है। की अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता। कहते है की हनुमान जी के पास यह आठ सिंधिया थी। क्या आप जानते है।

यह आठ सिद्धिया कौन-कौन सी है। अगर आप इसके बारे में नही जानते तो। आर्टिकल को अंत तक जरूर देखना। आपको बहुत सी रोचक जानकारी जानने को मिलेगी। तो चलिए शुरू करते है।

 आठ सिद्धिया

पहली सिद्धि - अणिमा

जीस साधक को यह सिद्धि की प्राप्ति हो जाये। वो अपनी इच्छा के अनुसार अपने शरीर को छोटा कर सकता है।

 

दूसरी सिद्धि - महिमा

यह सिद्धि अणिमा के बिलकुल विपरीत है। इस सिद्धि को प्राप्त साधक अपने शरीर को अपनी इच्छा के अनुसार कितना भी विशाल कर सकता है।

 

तीसरी सीधी - गरिमा

इस सिद्धि को प्राप्त साधक अपने भार को कई हजार गुना अधिक कर सकता है। अगर साधक चाहे तो वो अपने भार को किसी विशाल पर्वत के भार जितना कर सकता है। इसका उद्धरण तब मिलता है। जब रामायण काल में अंगद ने अपने पैर को जमीन पर रख लिया और रावण की पैर उठाने के लिए कहा। परंतु उठाना तो दूर बह उसे हिला भी ना सका।

 

चौथी सिद्धि - लघिमा

यह सिद्धि गरिमा सिद्धि के बिलकुल विपरीत है। इस सिद्धि को प्राप्त साधक अपने भार को इतना कम कर सकता है। की वो हवा में उड़ सकता है। आपने कई बार सुना होगा की ध्यान करते समय कई साधक हवा में थोडा सा ऊपर उठ गए है। इसे हम lavitation भी कहते है।

 

पांचवी सिद्धि- प्राप्ति

इस सिद्धि को सिद्ध साधक जो कुछ चाहेगा। बह उसको मिल जायेगा। वो किसी पशु पक्षी की भाषा को समझ सकता है। और आने वाले बक्त में क्या होगा बह देख सकता है। एक चीज ध्यान रहे की कुछ भी प्राप्त करने का मतलब वो चीज आपसे सम्बंधित होनी चाहिए।

 

छठी सिद्धि- प्राकाम्य

इस सिद्धि को प्राप्त साधक धरती की गहराई या अनंत आकाश में अपनी मरजी के अनुसार जितना समय चाहे रह सकता है। इसका मतलब है। की उसका अपनी साँस पर नियंत्रण बहुत बड जाता है। वो जितनी देर तक चाहे अपनी साँस को रोक सकता है। आपने देखा होगा की कई संत धरती के निचे कई दिनों तक समाधि लगा कर रहते है। और निश्चित समय के पश्चात जीवित बाहर आ जाते है।

 

सातवी सिद्धि- ईशित्व 

इस सिद्धि को प्राप्त साधक में दैविक शक्तिया आ जाती है। और उसमे किसी मृत ब्यक्ति को जीवित करने का बल भी आ जाता है। उसका पञ्च महा भूतो पर नियंत्रण हो जाता है।

 

अंतिम सिद्धि- वशित्व

इस सिद्धि के प्रभाव से साधक जितेंद्रिय हो जाता है। मतलब की दुसरो के मन पर नियंत्रण कर सकता है। जिसे हम सामान्य भाषा में सम्मोहन भी कह सकते है। आपके संकल्प मात्र से ही दूसरा ब्यक्ति आपके इशारो पे काम करेगा।

 



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