आईये जानते है सम्पूर्ण Ram Katha के बारे में वो भी हिंदी में।
Sampoorna ramayan ram katha पर आधारित है। जाने की भगवान श्री राम के जीवन पर आधारित है। इसमें भगवन के बचपन से लेकर पुरे जीवन की घटनाओ को बताया गया है।
तो चलिए जानते है Ram Katha में भगवान श्री राम के जीवन के बारे में।
Ramayan में रघुवंश के राजा राम की जीवन गाथा का वर्णन किया गया है। रामायण को महाकाव्य कहा गया है जो की संस्कृत में वाल्मीकि द्वारा लिखा गया है। रामायण में साथ अध्याय आते है। जो की काण्ड के नाम से जाने जाते है।
कुछ भारतीयो का कहना है की रामायण महाकाव्य को 600 ईपू से पहले लिखा गया है।
भारतीय कालगणना के अनुसार समय को चार युगों में बांटा गया है।
>>> सतयुग
>>> त्रेतायुग
>>> द्वापर
>>> कलियुग
माना जाता है की रामायण की घटनाये त्रेतायुग में हुई थी।
तो चलिए जानते है। सम्पूर्ण रामायण की कथा के बारे में जो की सात कांडो में लिखा हुआ है।
1. बालकाण्ड :- इसमें लिखा है। अयोध्या नगरी एक राजा हुए जिनका नाम दशरथ था और उस राजा की तीन पत्नियों थी। कौशल्या,कैकेयी और सुमित्रा। काफी समय तक संतान की प्राप्ति न होने के कारण। राजा ने पुत्रकामेष्टि यज्ञ किया। जिससे अग्नि देव ने प्रसन्न होकर राजा को खीर का पात्र दिया। उस प्रशाद का सेवन कर तीनो रानियों को पुत्र की प्राप्ति हुई।
>>> कौशल्या के गर्भ से राम का
>>> कैकेयी के गर्भ से भरत का
>>> सुमित्रा के गर्भ से लक्ष्मण और शत्रुघ्न
का जन्म हुआ।

राजकुमारों के बड़े होने पर ऋषि विश्वामित्र ने राजा दशरथ के पुत्र राम और लक्ष्मण को अपने आश्रम की राक्षसो से रक्षा के लिए मांगा और अपने साथ आश्रम ले गए। जहा राम ने ताड़का और सुबाहु जैसे बड़े राक्षसो को मारा कर आश्रम की रक्षा की। धनुसियज्ञ में सम्लित होने के लिए विश्वामित्र राम और लक्ष्मण को राजा जनक की नगरी मिथिला लेकर गए। यह पर माता सीता का सयम्बर रखा था। जहा पर शर्त रखी थी की जो व्यक्ति शिवधनुष को तोड़ेगा। उसका सीता के साथ विवाह किया जायेगा। तो यह शुभ कार्य राम ने किया। तो शर्त के अनुसार राम और सीता का विवाह किया गया। राम और सीता के विवाह के साथ गुरु वशिष्ठ ने
>>> भरत का माण्डवी से
>>> लक्ष्मण का उर्मिला से
>>> शत्रुघ्न का श्रुतकीर्ति
से करवा दिया।
तो बालकाण्ड जहा पर समाप्त होता है!!! अब शुरू होता है- अयोध्याकाण्ड
2.अयोध्याकाण्ड :- राम का जन्म राक्षसो के राजा रावण की मारने के लिए हुआ था। परंतु राम के विवाह के पश्चात राजा जनक ने राम का राज्याभिषेक करने की त्यारी कर दी। यह देख देवताओ को चिंता होने लग गयी। की अगर राम राजा बन गए। तो रावण का बध करना असंभव हो जायेगा। तो देवताओ ने देवी सरस्वती से इस समस्या का हल माँगा।
तो सरस्वती देवी ने केकयी की दासी मन्थरा की बुद्धि को पलट दिया और मन्थरा ने केकयी की अपने पुत्र के बारे सोचने को कहा। जिससे केकयी कोपभवन चली गयी और जब राजा दशरथ उसे मनाने आये। तो उसने राजा से बरदान माँगा की उसके पुत्र भरत को राजा बनाया जाये और राम को 14 वर्ष का वनवास दिया जाये।

राजा के समझाने पर कुछ बात न बनी। तो राम के साथ सीता और लक्ष्मण भी वन की तरफ निकल गए। ऋग्वेरपुर में निषादराज ने तीनो की बहुत सेवा की। उसके बाद केवट ने तीनो को गंगा नदी के पार उतारा। अब वो प्रयाग पहुंच गए। जहा पर राम ने भरद्वाज मुनि से भेट की। फिर राम , सीता और लक्ष्मण चित्रकूट में निवास करने लग गए।
पुत्र के वियोग में महाराज दशरथ का स्वर्गवास हो गया। जिसके बाद भरत ने अयोध्या के राज्य को अस्वीकार कर दिया और भरत राम को बापिस लेने के लिए चित्रकूट चले गए। राम से मिलने के बाद भरत ने अपना प्रस्ताव रखा पर बह उसमे विफल हो गया। राम के मना करने पर भरत राम की पादुकाओं को अपने साथ लेकर आ गया और उस पादुकाओं की राज सिंघासन पर रख कर, आप नन्दिग्राम में निवास करने लग गए।
तो अयोध्याकाण्ड जहा पर समाप्त होता है!!! अब शुरू होता है- अरण्यकाण्ड
3.अरण्यकाण्ड :- कुछ समय तक राम ने चित्रकूट में वास किया। उसके बाद राम ने अत्रि मुनि और शरभंग मुनि से भेट की और शास्त्रो का ज्ञान अर्जित किया। अपने रास्ते पर आगे बढ़ते राम ने अनेको नर कंकाल देखे। जिसे पूछने पर ऋषियो ने बताया की यह कंकाल मुनियो के है। जिसे राक्षसो ने ऋषियो को खा कर जहा बहा फेंक दिया है। ऐसा सुन राम ने प्रतिज्ञा की, की वो पूरी दुनिया के राक्षसो को मार देगे। इसके बाद राम अपने रास्ते पर आगे चलते हुए। कई मुनियो जैसे सुतीक्ष्ण, अगस्त्य आदि से भेट करते हुए उन्होंने दण्डक वन में प्रवेश किया। जहा उनकी मुलाकात जटायू से हुई। उसके बाद वह पंचवटी में रहने लग गए।

एक दिन रावण की बहन सरूपनख वह आई और राम का आकर्षक मुख देख उस पर मोहित हो गयी। उसने राम से शादी के लिए पूछा तो उन्होंने ने न करते हुए लक्ष्मण की तरफ इशारा किया। जब बह लक्ष्मण के पास पहुंची तो लक्ष्मण ने गुसे में आकर दुश्मन की बहन जान उसका नाक काट दिया। जिससे बह सहायता के लिए अपने भाई खर और दूषण के पास गयी। बह राम और लक्ष्मण को बंदी बनाने के लिए सेना लेकर आये । लेकिन राम और लक्ष्मण ने उनका वध कर दिया। तो इसके पश्चात सरूपनख रावण के पास अपनी फरियाद लेकर गयी। जिससे रावण ने युक्ति सोची जिसमे उसने मारिची को स्वर्ण मृग बना कर भेजा।
जिसे देख सीता ने उसकी मांग की। जब राम लक्ष्मण को सीता की रक्षा में छोड़ उस मृग को लेने के लिए जंगल में गए। बहा मृग तो राम के हाथो मारा गया। लेकिन मरते समय बह राम की आवाज में करहाने लगा। जिसे सुन सीता चिंतित हो गयी और लक्ष्मण को देखने के लिए भेजा। लक्ष्मण के जाने के बाद अकेली सीता को देख रावण बहा आ गया और उसे उठा कर अपने साथ ले जाने लगा। जिसे देख जटायू ने रावण को रोकने की कोशिश की परंतु रावण ने जटायु के पर काट दिए और उसे अधमरा कर दिया।
जब राम बापिस आये तो सीता को न देख वो बहुत दुखी हुए और इधर उधर सीता को ढूंढने लगे। उस समय उनकी नजर जटायु पर पड़ी। तब जटायु ने सारी बात बताते कहा की रावण सीता को दक्षिण दिशा की तरफ लेकर गया है। उसके बात जटायु ने अपने प्राण त्याग दिए। राम ने उसका संस्कार किया और आगे दक्षिण दिशा की तरफ चलते गए। जहा राम की भेट उनकी परम भक्त शवरी से हुई जहा राम ने उसके झूठे बेर खाये। उसके बाद वो दोबारा सीता की खोज में गहरे वन में चलते गए।
तो अरण्यकाण्ड जहा पर समाप्त होता है!!! अब शुरू होता है- किष्किन्धाकाण्ड
4.किष्किन्धाकाण्ड :- राम अपना रास्ता तय करते। ऋषीमुख के निकट आ गए। जहा पर वानरों का राजा सुग्रीव रहता था। उसकी अपने भाई वालि के साथ लड़ाई हुई थी और वालि सुग्रीव की जान का प्यासा था। जिसकी बजह से सुग्रीव उससे डर कर उस पर्वत पर वास करता था। राम और लक्ष्मण को देख उसने हनुमान को भेज, यह जानने के लिए कहि वे वालि के गुप्तचर तो नही। जब इस बात की पुस्टि हो गयी। तो हनुमान ने सुग्रीव और राम की मित्रता करवादी। और सुग्रीब ने राम की मद्त करने का वचन दिया। और अपने भाई के अपने ऊपर अत्याचार के बारे में बताया।

जिसे सुन राम ने छल से सुग्रीव के भाई वालि को मार दिया। और किष्किन्धा का राजा सुग्रीव को बना दिया और वाली के बेटे अंगद को युवराज बना दिया। उसके बाद सुग्रीव ने बानरो की टुकड़ी को सीता की खोज के लिए भेजा। सीता की खोज में निकले वानरों को एक गुफा में योगिनी मिली जिसने उन्हें अपनी माया से समुन्दर तट पर पहुंचा दिया। जहा उन वानरों की भेट सम्पाती से हुई। जिसने वानरों को बताया की रावण ने सीता को अशोकवाटिका में रखा है। जो की समुन्दर के दूसरे छोर पर थी। तो वानरों ने हनुमान को समुन्दर पार करने के लिए प्रेरित किया।
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