Contact Information

Theodore Lowe, Ap #867-859
Sit Rd, Azusa New York

We're Available 24/ 7. Call Now.

हम अपने पिछले जन्म की बातो को भूल कियो जाते है।

सन्यास कितने प्रकार का होता है।

महात्मा बुद्ध के जीवन का एक बेहतरीन किस्सा।

बौद्ध ग्रंथों में तैंतीस हजार नियम हैं

बौद्ध ग्रंथों में तैंतीस हजार नीति के नियम हैं। याद भी न कर पाओगे। कैसे याद करोगे? तैंतीस हजार नियम! और जो आदमी तैंतीस हजार नियम याद करके जीएगा, वह जी पाएगा? उसकी हालत वही हो जाएगी, जो मैंने सुनी है, एक बार एक सेंटीपीड, शतपदी की हो गई।


यह शतपदी, सेंटीपीड जो जानवर होता है, इसके सौ पैर होते हैं। चला जा रहा था सेंटीपीड, एक चूहे ने देखा। चूहा बड़ा चौंका, उसने कहा: सुनिए जी, सौ पैर! कौन सा पहले रखना, कौन सा पीछे रखना, आप हिसाब कैसे रखते हो?

displayAds

सौ पैर मेरे हों तो मैं तो डगमगाकर वहीं गिर ही जाऊं। सौ पैर आपस में उलझ जाएं, गुत्थमगुत्था हो जाए। सौ पैर! हिसाब कैसे रखते हो कि कौन सा पहले, फिर नंबर दो, फिर नंबर तीन, फिर नंबर चार, फिर नंबर पांच…सौ का हिसाब! गिनती में मुश्किल नहीं आती?


सेंटीपीड ने कभी सोचा नहीं था; पैदा ही से सौ पैर थे, चलता ही रहा था। उसने कहा: भाई मेरे, तुमने एक सवाल खड़ा किया! मैंने कभी सोचा नहीं, मैंने कभी नीचे देखा भी नहीं कि कौन सा पैर आगे, कौन सा पहले। लेकिन अब तुमने सवाल खड़ा कर दिया, तो मैं सोचूंगा, विचारूंगा।



सेंटीपीड सोचने लगा, विचारने लगा; वहीं लड़खड़ाकर गिर पड़ा। खुद भी घबड़ा गया कि कौन सा पहले, कौन सा पीछे।


एक जीवन की सहजता है। तुम्हारे नियम, तुम्हारे कानून सारी सहजता नष्ट कर देते हैं। तैंतीस हजार नियम! कौन सा पहले, कौन सा पीछे? तैंतीस हजार का हिसाब रखोगे, मर ही जाओगे, दब ही जाओगे, प्राणों पर पहाड़ बैठ जाएंगे। मैं तो तुम्हें सिर्फ एक नियम देता हूं होश। बेहोशी छोड़ो, होश सम्हालो। और ये तैंतीस हजार नियम भी बेईमानों को नहीं रोक सकते।

वे कोई न कोई तरकीब निकाल लेते हैं। अंग्रेजी में एक कहावत है कि जहां भी संकल्प है, वहीं मार्ग है। उस कहावत में थोड़ा फर्क कर लेना चाहिए। मैं कहता हूं जहां भी कानून है, वहीं मार्ग है। तुम बनाओ कितने कानून बनाते हो, मार्ग निकाल लेगा आदमी।


ऐसा हुआ कि बुद्ध के पास एक भिक्षु आया। बुद्ध का नियम था कि जो भी भिक्षापात्र में पड़ जाए, उसे स्वीकार कर लेना चाहिए। इसलिए नियम बनाया था, ताकि भिक्षु मांग न करने लगें सुस्वादु भोजनों की। जो भी पड़ जाए भिक्षापात्र में, रूखी—सूखी रोटी, या सुस्वादु भोजन, जो भी पड़ जाए भिक्षापात्र में,

उसे चुपचाप स्वीकार कर लेना चाहिए। ना—नुच नहीं करना। यह नहीं लूंगा, वह लूंगा, ऐसे इशारे नहीं करना। अपनी तरफ से कोई वक्तव्य ही नहीं देना। भिक्षापात्र सामने कर देना, जो मिल जाए। ताकि गृहस्थों पर व्यर्थ बोझ न पड़े।

displayAds

एक दिन ऐसा मुश्किल हो गया, एक भिक्षु मांगकर आ रहा था कि एक चील ऊपर से मांस का एक टुकड़ा उसके भिक्षापात्र में गिरा गई। अब वह बड़ी मुश्किल में पड़ा। नियम कि जो भी भिक्षापात्र में पड़ जाए! अब करना क्या? इसको छोड़ना या ग्रहण करना? अगर छोड़े, तो नियम टूटता है। अगर ग्रहण करे, तो मांसाहार होता है; वह भी नियम टूटता है। अब करना क्या?

तो उसने जाकर बुद्ध से कहा। भिक्षु—संघ में खड़ा हुआ और उसने कहा कि ऐसी प्रार्थना है, बड़ी उलझन में पड़ गया; दो नियमों में विरोध आ गया है। अगर इसका स्वीकार करूं, तो मांसाहार हो जाएगा, हिंसा हो जाएगी। अगर अस्वीकार करूं, तो आपने कहा है भिक्षापात्र में जो पड़े, स्वीकार कर लेना।


बुद्ध थोड़ा सोच में पड़े; अगर कहें कि स्वीकार करो, तो खतरा है, क्योंकि मांसाहार को स्वीकृति मिलती है। अगर कहें अस्वीकार करो, तो और भी बड़ा खतरा है; क्योंकि चीलें कोई रोज रोज थोड़े ही मांस गिराएंगी, यह तो दुर्घटना है एक।

अगर यह कह दें कि जो ठीक न हो छोड़ देना, तो बस अड़चन शुरू हो जाएगी कल से ही। भिक्षुओं को जो ठीक नहीं लगेगा, वह छोड़ देंगे; और जो ठीक लगेगा, वही ग्रहण करेंगे। फिर उनकी मांगें शुरू हो जाएंगी। फिर बहुत सा भोजन व्यर्थ फेंकने लगेंगे।

displayAds

उन्होंने सोचा, और उन्होंने कहा: कोई फिक्र न करो, जो भी भिक्षापात्र में पड़ जाए, उसे स्वीकार कर लेना। क्योंकि चील कोई रोज रोज मांस नहीं गिराएगी, यह दुर्घटना है।


मगर बुद्ध को पता नहीं कि दुर्घटना बस नियम बन गई! आज चीन में, जापान में, सारे बौद्ध मुल्कों में मांसाहार प्रचलित है, उसी घटना के कारण! क्योंकि मांसाहार में अगर पाप होता, तो भगवान ने मना किया होता।

अब सवाल यह है कि खुद मारकर नहीं खाना चाहिए, चील ने गिरा दिया तो कोई हर्जा नहीं! इसलिए चीन और जापान में तुम्हें होटलें मिलेंगी, जिन पर तख्ती लगी होती है यहां अपने आप मर गए जानवरों का मांस ही बेचा जाता है।



अब इतने जानवर अपने आप रोज कहीं नहीं मरते कि पूरा देश मांसाहार करे। इतने जानवर अपने आप! सारे देश बूचड़खानों से भरे हैं। फिर बूचड़खानों में क्या हो रहा है? फिर बूचड़खाने क्यों चल रहे हैं? मगर होटल के मालिक को इसकी फिक्र नहीं है; वह इतना भर तख्ती लगा देता है

कि यहां अपने आप मर गए जानवरों का मांस बेचा जाता है। बस ग्राहक को फिक्र मिट गई! ग्राहक भी जानता है, दुकानदार भी जानता है। मगर वह एक छोटी सी घटना…चील ने बड़ी क्रांति ला दी दुनिया में! पूरा एशिया मांसाहारी है उस एक चील की वजह से।


कानून में से लोग रास्ते निकाल लेते हैं। जहां जहां कानून, वहां वहां रास्ते। मैं तुम्हें कानून नहीं देता, मैं तो तुम्हें सिर्फ बोध देता हूं; ताकि तुम अपने बोध से ही जीयो। जो तुम्हें ठीक लगे किसी क्षण में समझपूर्वक, विचारपूर्वक, जागृतिपूर्वक, वही करना।


कहै वाजिद पुकार 

ओशो


SHARE:

ध्यान से अपनी जागरूकता को कैसे बढ़ाया जा सकता है।

गंगा जी में ही अस्थियां विसर्जित क्यों की जाती है।

Leave A Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *