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क्या आसन में बैठ कर ध्यान करना बेहतर है।

क्या सम्मोहन की सहायता से ध्यान को प्राप्त कर सकते है।

आइये जानते है सात Chakra और उनके रंगो के बारे में।

सात Chakra और उनके रंग।

संस्कृत में Chakra का अर्थ होता है घूमना या पहिया। चक्र एक प्रकार की शरीरिक ऊर्जा की कुण्डलिनी है। यह हमारे शरीर में ऊर्जा के परवाह को नियंत्रण करने में बड़ा सहयोगी होता है। यह हमारे शरीर में घूमते हुए। ऊर्जा के परवाह को निचे से ऊपर तक प्रस्थापित करते है।

seven chakra

हमारे शरीर के चक्रों को ऊर्जा केंद्र भी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है की हमारे सूक्षम शरीर के सात प्रमुख चक्र है। हमारे सूक्ष्म शरीर के चक्रों को दो प्रकार में भिवाजित किया गया है। पहला फूल की तरह, जिसमे प्रत्येक परिधि के बाद एक विशेष संख्या में पंखुड़ी के अकार बनाये जाते है। और दूसरा इसे एक गोल चक्र की तरह दिखाया जाता है।

चक्रों के बारे में अधिकतर जानकारी उपनिषदों में मिलती है। पहली बार 1200-900 BCE में चक्रों की जानकारी के बारे में लिखा गया। उसके पूर्व वे मौखिक रूप से ही अस्तित्व में थे। हमारे शरीर की तीन प्रमुख नाडिया इडा, पिंगला,और ससुपना है। जो की हमारे शरीर के निचले भाग से शुरू होती हुई ऊपर की और उठती है। जिस स्थान पर ये नाडिया आपस में मिलती है।

बह स्थान चक्र कहलाता है। हमारे शरीर के सभी चक्र रीड के पास ही होते है। तभी तो ध्यान करते समय कहा जाता है की रीड सीधी करके बेठना चाहिए। क्योकि कहि पर ऊर्जा का परवाह ना रुक जाये। बेसे तो हमारे शरीर में हजारो चक्र होते है। पर मुख्यतः सात चक्रो का विवरण मिलता है।

chakra

पहला चक्र - मूलाधार चक्र इसे मूल चक्र भी कहा जाता है। यह चक्र हमारी प्रवर्ति, सुरक्षा,और मानव की मौलिक क्षमता से सम्बंधित है। यह गुप्तांग के बिच में स्थित होता है। जब आपका अस्तित्व खतरे में होता है। तो मरने या मारने का होसला इसी। चक्र से आता है। इस चक्र का प्रतिक लाल रंग का और चार पँखुडिओ वाला कमल है और यह चक्र हमारी काम बासना को नियंत्रित करता है।

दूसरा चक्र - स्वाधिष्ठान चक्र का प्रतीक छह पंखुडि़यों वाला कमल और यह नारंगी रंग का होता है। यह चक्र आपकी भावनाओ को नियंत्रित करता है। जेसे की हिंसा, क्रोध, प्रेम आदि से है। जब आप ध्यान करोगे तो महसूस करोगे की आपको अचानक किसी अनजानी Khushi या फिर कभी दुःख जा भय का अनुभव जरूर हुआ होगा। तब यह चक्र सक्रीय अवस्था में होता है।

तीसरा चक्र - मणिपूर चक्र। इस चक्र का संभन्ध हमारे पाचन क्रिया से है। यह चक्र हमारे शरीर में खाये हुए भोजन को ऊर्जा में परिवर्तन करने में बहुत बड़ी भूमिका निभाता है। इसका प्रतीक दस पँखुडिओ वाला कमल है। इसका रंग पिला होता है। अगर आपका यह चक्र सक्रीय है । तो आपमे होरो के मुकाबले अधिक बल होगा। आप अन्तर्मुखी परिवर्ती के होंगे। जाने की अपने आप में मस्त।

चौथा चक्र - अनाहत चक्र। ह्रदय के पास स्थित होने के कारण। हम इसे हृदय चक्र भी कहते है। इस चक्र का प्रतीक बारह पंखुड़ियों का कमल होता है। यह चक्र गुलाबी या हरे रंग का हो सकता है। इस चक्र के सक्रीय होने पर आपमे करुणा भाव का उदय होगा। आपमे दुसरो के प्रति प्रेम अधिक हो जायेगा। और आप कभी अहिंसा नही कर पाओगे। हमारे देश के महान ब्यक्ति जैसे की महात्मा गांधी इसी चक्र के प्रभाव में थे। तभी तो उन्होंने अहिंसा का मार्ग चुना।

पांचवा चक्र - विशुद्ध: चक्र। इसे हम कंठ चक्र भी कह देते है। इस चक्र का प्रतीक सोलह पंखुड़ियों वाला कमल है। इस चक्र की पहचान हल्के या पीलापन लिये हुए नीले या फिरोजी रंग से होती है। इस चक्र की स्थिति आप के कंठ जाने गई गले के पास होती है। कहते है। जिसका यह चक्र सक्रीय हो जाता है। उसकी वाणी बहुत ही सुरीली हो जाती है। और वो व्यक्ति जो भी कुछ बोलेगा। बह सत्य हो जाता है।

छठा चक्र - आज्ञा चक्र इसे तृतीय नेत्र के रूप में भी जाना जाता है। यह चक्र चीटीदार ग्रंथि से जोड़ा होता है। चीटीदार ग्रंथि रोशनी के प्रति संवेदी ग्रंथि होती है। जो की मेलाटोनिन हर्मोन का निर्माण करती है जो सोने या जागने की क्रिया को नियंत्रित करती है। इसका प्रतिक दो पँखुडिओ वाला कमल है। और इसका रंग नील या गहरे नीले रंग से मेल खाता है। इस चक्र का मूल कार्य अंतर ज्ञान को उपयोग में लाना है। जिस ब्यक्ति का यह चक्र सक्रीय है। उसकी Will power सबसे अधिक होगी। जो वो कहेगा। बह जरूर करके दिखाएगा। आपने यह जरूर सुना होगा की हमारे संत महात्मा जब चाहते थे तब ही अपना शरीर त्याग देते थे। उनकी इच्छा भर ही मात्र थी।

अंतिम चक्र - सहस्रार चक्र, इस चक्र को हम शुद्ध चेतना का चक्र भी कहते है। इस चक्र का प्रतीक कमल की एक हजार पंखुडि़यां हैं और यह सिर के शीर्ष पर होता है। जहा पर पंडित चोटी बांधते है। यह बैंगनी रंग का होता है। अगर आपका यह चक्र सक्रीय हो जाये। तो आप दुनिया के सारे कर्मो से मुक्त हो जाओगे। मतलब आप उस काम को करते हुए भी उससे दूर रहोगे। आपमें साक्षी भाव का उदय हो जायेगा। आप अपने सारे शरीर के प्रति सचेत हो जाओगे। आप बहुत ही सम्बेदनशील अवस्था में पहुंच जाओगे।यह चक्र बहुत ही कम लोगो का सक्रीय होता है।



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