Contact Information

Theodore Lowe, Ap #867-859
Sit Rd, Azusa New York

We're Available 24/ 7. Call Now.

जानवर को नहीं करते आत्महत्या - OSHO ?

मैंने सुना है कि एक बार चीन के एक सम्राट ने अपने प्रधानमंत्री को फांसी की सजा दे दी। जिस दिन प्रधानमंत्री को फांसी दी जाने वाली थी, सम्राट उससे मिलने आया, उसे अंतिम विदा कहने आया। वह उसका बहुत वर्षों तक वफादार सेवक रहा था, लेकिन उसने कुछ किया था, जिससे सम्राट बहुत नाराज हो गया और उसे फांसी की सजा दे दी। लेकिन यह याद करके कि यह उसका अंतिम दिन है, सम्राट उससे मिलने आया।
 
जब सम्राट आया तो उसने देखा कि प्रधानमंत्री रो रहा है, उसकी आंखों से आंसू बह रहे हैं। वह सोच भी नहीं सकता था कि मृत्यु उसके रोने का कारण हो सकती है, क्योंकि प्रधानमंत्री बहुत बहादुर आदमी था। उसने कहा, ‘यह कल्पना करना भी असंभव है कि तुम मृत्यु को निकट देखकर रो रहे हो। यह सोचना भी असंभव है। तुम बहादुर आदमी हो और मैंने अनेक बार तुम्हारी बहादुरी देखी है। अवश्य कोई और बात है। क्या बात है? यदि मैं कुछ कर सकता हूं तो जरूर करूंगा।’
 
प्रधानमंत्री ने कहा, ‘अब कुछ भी नहीं किया जा सकता; और बताने से भी कुछ लाभ नहीं होगा। लेकिन अगर आप जिद करेंगे तो मैं अभी भी आपका सेवक हूं आपकी आज्ञा मानकर बता दूंगा।’
 
सम्राट ने जिद की और प्रधानमंत्री ने कहा, ‘मेरे रोने का कारण मृत्यु नहीं है; क्योंकि मृत्यु कोई बड़ी बात नहीं है। मनुष्य को एक दिन मरना ही है; किसी भी दिन मृत्यु हो सकती है। मैं तो बाहर खड़े आपके घोड़े को देखकर रो रहा हूं।’
 
सम्राट ने पूछा, ‘घोड़े के कारण रोते हो? लेकिन क्यों?’
 
प्रधानमंत्री ने कहा, ‘मैं जिंदगीभर इसी तरह के घोड़े की तलाश में रहा; क्योंकि मैं एक प्राचीन कला जानता हूं। मैं घोड़ों को उड़ना सिखा सकता हूं लेकिन उसके लिए एक खास किस्म का घोड़ा चाहिए। यह उसी किस्म का घोड़ा है। और यह मेरा अंतिम दिन है। मुझे अपनी मृत्यु की फिक्र नहीं है; मैं रोता हूं कि मेरे साथ एक प्राचीन कला भी मर जाएगी।’
 
सम्राट की उत्सुकता जगी घोड़ा उड़े, यह कितनी बड़ी बात होगी उसने कहा, ‘घोड़े को उड़ना सिखाने में कितने दिन लगेंगे?
 
प्रधानमंत्री ने कहा, कम से कम एक वर्ष और यह घोड़ा उड़ने लगेगा।’
 
सम्राट ने कहा, ‘बहुत अच्छा! मैं तुम्हें एक वर्ष के लिए आजाद कर दूंगा। लेकिन स्मरण रहे, यदि एक वर्ष में घोड़ा नहीं उड़ा तो तुम्हें फिर फांसी दे दी जाएगी। और यदि घोड़ा उड़ने लगा तो तुम्हें माफ कर दिया जाएगा। और माफ ही नहीं, मैं तुम्हें अपना आधा राज्य भी दे दूंगा। क्योंकि मैं इतिहास का पहला सम्राट होऊंगा जिसके पास उड़ने वाला घोड़ा होगा। तो जेल से बाहर आ जाओ और रोना बंद करो।’
 
प्रधानमंत्री घोड़े पर सवार, प्रसन्न और हंसता हुआ अपने घर पहुंचा। उसकी पत्नी अभी भी रो-धो रही थी। उसने कहा, ‘मैंने सब सुन लिया है। तुम्हारे आने के पहले ही मुझे खबर मिल गई है। लेकिन बस एक वर्ष? और मैं जानती हूं तुम्हें कोई कला नहीं आती है और यह घोड़ा कभी उड़ नहीं सकता। यह तो तरकीब है, धोखा है। तो अगर तुम एक साल का समय मांग सकते थे तो दस साल का समय क्यों नहीं माग लिया?’
 
प्रधानमंत्री ने कहा, ‘वह जरा ज्यादा हो जाता। जो मिला है वही बहुत ज्यादा है। घोड़े के उड़ने की बात ही अविश्वसनीय है, फिर दस साल का समय मांगना सरासर धोखा होता, लेकिन रोओ मत।’
 
लेकिन पत्नी ने कहा, ‘यह तो मेरे लिए और बड़े दु:ख की बात है कि मैं तुम्हारे साथ भी रहूंगी और भीतर-भीतर मुझे पता भी है कि एक वर्ष के बाद तुम्हें फांसी लगने वाली है। यह एक वर्ष तो भारी दु:ख का वर्ष होगा।’
 
प्रधानमंत्री ने कहा, ‘अब मैं तुम्हें एक प्राचीन भेद की बात बताता हूं जिसका तुम्हें पता नहीं है। इस एक वर्ष में सम्राट मर सकता है, घोड़ा मर सकता है, मैं मर सकता हूं। या कौन जाने घोड़ा उड़ना ही सीख जाए। एक वर्ष!’
 
बस आशा मनुष्य आशा के सहारे जीता है, क्योंकि वह इतना ऊबा हुआ है। और जब ऊब उस बिंदु पर पहुंच जाती है जहां तुम और आशा नहीं कर सकते, जहां निराशा परिपूर्ण होती है, तब तुम आत्महत्या कर लेते हो। ऊब और आत्महत्या, दोनों मानवीय घटनाएं हैं।
 
कोई पशु आत्महत्या नहीं करता है। कोई वृक्ष आत्महत्या नहीं करता है। ऐसा क्यों हो गया है? इसके पीछे कारण क्या है? क्या आदमी बिलकुल भूल गया है कि कैसे जीया जाता है, कि कैसे जीवन का उत्सव मनाया जाता है? जब कि सारा अस्तित्व उत्सवपूर्ण है, यह कैसे संभव हुआ कि केवल मनुष्य उससे बाहर निकल गया है और उसने अपने चारों ओर विषाद का एक वातावरण निर्मित कर लिया है?
 
मगर ऐसा ही हो गया है। पशु वृत्तियों के द्वारा जीते हैं; वे बोध से नहीं जीते। वे प्रकृति द्वारा संचालित होते हैं, वे यंत्रवत जीते हैं। उन्हें कुछ सीखना नहीं है; वे उसे लेकर ही जन्म लेते हैं जो सीखने योग्य है। उनका जीवन वृत्तियों के तल पर निर्बाध चलता रहता है। उन्हें कुछ सीखना नहीं है। उन्हें जीने और सुखी होने के लिए जो भी चाहिए वह उनकी कोशिकाओं में बिल्ट इन है, उसका ब्‍लूप्रिंट पहले से तैयार है। इसलिए वे यंत्रवत जीए जाते हैं।
 
मनुष्य ने अपने वृत्तिया खो दी हैं, अब उसके पास कोई ब्‍लूप्रिंट नहीं है। तुम बिना किसी ब्लूप्रिंट के, बिना किसी बिल्ट इन प्रोग्रेम के जन्म लेते हो। तुम्हारे लिए कोई बनी बनाई यांत्रिक रेखाएं उपलब्ध नहीं हैं, तुम्हें अपना मार्ग स्वयं निर्मित करना है। तुम्हें वृत्ति की जगह कुछ ऐसी चीजें निर्मित करनी हैं जो वृत्ति नहीं हैं, क्योंकि वृत्ति तो जा चुकी। तुम्हें वृत्ति की जगह विवेक से काम लेना है; तुम्हें वृत्ति की जगह बोध से काम लेना है। तुम यंत्र की भांति नहीं चल सकते हो।
 
तुम उस अवस्था के पार चले गए हो जहां यांत्रिक जीवन संभव है; यांत्रिक जीवन तुम्हारे लिए संभव नहीं है। समस्या यह है कि तुम पशु की भांति नहीं जी सकते और तुम यह भी नहीं जानते कि जीने का और कोई ढंग भी है यही समस्या है।
 

Link



SHARE:

कुत्ते ने मारी अपने मालिक को गोली।

क्या इस बच्चे को मरने से बचाना सही था।

Leave A Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *